समाजवादी पार्टी आजम खान और मुसलमान

जो फन में फिक्र के मंज़र तलाश करता है,
वो रहबर भी तो बेहतर तलाश करता है,
हमारे क़त्ल को मीठी ज़बान काफी है,
अजीब शख़्स है ख़ंजर तलाश करता है
(शेर लेखक उस्मान सिद्दीकी)
लखनऊ:(उस्मान सिद्दीकी)– साल 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन से लेकर साल 2009 के लोकसभा चुनाव तक समाजवादी पार्टी के मुसलमानों के तथाकथित रहनुमा उर्फ ‘POP’ जनाब आज़म ख़ान साहब पार्टी हाईकमान से लेकर सैफई परिवार तक ख़ासे ताक़तवर रहे। समाजवादी पार्टी की सियासत में पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष रहे माननीय मुलायम सिंह यादव जी और उनके छोटे भाई माननीय शिवपाल सिंह यादव जी के बाद आज़म ख़ान साहब तीसरे नंबर के नेता माने जाते थे।
इस तीसरे नंबर की जंग में आज़म ख़ान ने समाजवादी पार्टी के काॅडर के बहुत सारे नेताओं का करियर या तो ज़ीरो कर दिया या फिर उनको पार्टी छोड़कर बाहर का रास्ता देखना पड़ा जिनमें अमर सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, केसी त्यागी और राज बब्बर सरीख़े दिग्गज राजनेता शामिल हैं।
सपा के संस्थापक अध्यक्ष रहे मुलायम सिंह यादव को आज़म ख़ान साहब से ऐसा ‘अज़ीम प्रेम’ था कि उन्होंने आज़म ख़ान की वजह से अपने संघर्ष के दौर के बहुत सारे समाजवादी साथियों की क़ुर्बानी कर दी और बहुतों को आज़म ख़ान के आगे झुकने पर मजबूर होना पड़ा।
लेकिन आख़िरकार साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी की सियासत में एक वक़्त ऐसा भी आया जब रामपुर से पार्टी की सांसद रहीं और उस समय सपा की आधिकारिक प्रत्याशी जया प्रदा का विरोध करने के चलते आज़म ख़ान को 6 साल के लिये पार्टी से निष्कासित कर दिया गया और वहाँ से आज़म ख़ान का बुरा दौर शुरू हो गया।
आज़म ख़ान तक़रीबन 2 साल तक समाजवादी पार्टी से निष्कासित और कोपभावन में रहे लेकिन इसी बीच साल 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने आज़म ख़ान के निष्कासन को रद्द कर उनको पार्टी में वापस ले लिया।
आज़म ख़ान वैसे तो समाजवादी पार्टी और सैफई परिवार के बेहद क़रीबी और सूबे में उच्च कोटि के क़द्दावर राजनेता थे लेकिन आज़म ख़ान की सपा में वापसी के सूत्रधार बने उस समय समाजवादी पार्टी में धीरे-धीरे उभर रहे तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के बेहद क़रीबी और वर्तमान में 2 बार के विधायक आशु मलिक जी।
साल 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी बहुत सीरियस थी और वो किसी भी तरह भ्रष्टाचार में बुरी तरह डूबी तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती जी के नेतृत्व वाली सूबे की बीएसपी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिये वचनबद्ध थी।
समाजवादी पार्टी की इस मुहिम में तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव जी समेत उनके छोटे भाई माननीय शिवपाल सिंह यादव जी, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव जी समेत कई माननीय गुणा-भाग में लगे थे और आशु मलिक भी उसी की एक कढ़ी थे।
दुनिया भर में मश्हूर हिंदोस्तान के एक अज़ीम मुस्लिम मर्कज़ देवबंद के नज़दीक़ मुज़फ्फरनगर ज़िले के एक छोटे से गाँव के निवासी आशु मलिक उस समय पेशे से उर्दू पत्रकार थे और तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव जी के बेहद क़रीबी हो जाने के चलते सूबे की सत्ता की चाभी सपा को दिलाने के लिये वचनबद्ध और प्रयासरत थे।
अपने इन प्रयासों के दौरान जहाँ एक तरफ आशु मलिक ने दिल्ली से लखनऊ तक के बहुत सारे उर्दू पत्रकारों और मीडिया हाउसों को सपा के लिये मैनेज किया वहीं दूसरी तरफ आशु मलिक ने उस समय देश के बहुत सारे मुस्लिम उलेमाओं की तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव जी से मेल-मुलाक़ात समेत पार्टी में बहुत सारे छोटे-बड़े नेताओं की ज्वाइनिंग या वापसी भी कराई।
उसी कढ़ी में आशु मलिक ने रामपुर का रुख़ किया और फिर कई हफ्तों के कड़े संघर्ष के बाद बिछुड़े और नाराज़ बैठे 2 बड़े समाजवादी नेताओं क्रमशः माननीय मुलायम सिंह यादव जी और माननीय आज़म ख़ान साहब का मिलन करवा दिया।
विधानसभा चुनाव तक कुछ दिन सब ठीक-ठाक चला और सबने मिलकर सूबे की सत्ता में वापसी कर ली। तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव जी के निर्णय के मुताबिक़ अखिलेश यादव को सूबे का नया मुख्यमंत्री चुन लिया गया और आज़म ख़ान साहब एक बार फिर समाजवादी सरकार में तीसरे नंबर के ताक़तवर कैबिनेट मंत्री हो गये।
सूबे में एक बार फिर समाजवादी सरकार के गठन के बाद इधर सब अपने-अपने काम में लगे उधर मुलायम के क़रीबी आशु मलिक अपने संघर्ष, मेहनत और पार्टी एवं परिवार के प्रति ईमानदारी के चलते मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के भी क़रीबी होने लगे और धीरे-धीरे पार्टी में उनका क़द बढ़ने लगा।
तत्कालीन पार्टी मुखिया मुलायम के निर्देश पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आशु मलिक को इनाम के तौर पर सबसे पहले उत्तर प्रदेश पुलिस की वाई श्रेणी सुरक्षा और उसके साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार में दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री भी बना दिया।
पार्टी हाईकमान द्वारा ये सब इनाम पाने के बाद आशु मलिक लगातार अपने काम में जुटे रहे और मुज़फ्फरनगर समेत हाशिमपुरा-मलियाना दंगा पीड़ितों की मदद से लेकर नोएडा के अख़लाक़ हत्याकांड में पीड़ित परिवार की मदद समेत बहुत सारे क्रांतिकारी कार्यों को अंजाम देते रहे जिसके चलते पार्टी हाईकमान ने कुछ दिन बाद उत्तर प्रदेश विधानपरिषद का सदस्य/विधायक बनाकर आशु मलिक को राजनीति में अमर कर दिया।
अपनी तुनकमिज़ाजी और पार्टी में दूसरे नेताओं के बढ़ते सियासी क़द से हमेशा खार खाने वाले हमारी क़ौम के महानतम नेता जनाब आज़म ख़ान साहब को जैसे ही पार्टी में आशु मलिक के बढ़ते क़द का अंदाज़ा लगा उन्होंने तत्काल आशु मलिक से बेवजह की दूरियाँ बढ़ाकर अपने और आशु मलिक के बीच खाई बढ़ानी शुरू कर दी।
पार्टी में वापसी का माध्यम बनने वाले आशु मलिक से पहले थोड़ी नरमी और अपनाइयत रखने वाले आज़म ख़ान साहब अचानक तुनक गये और फिर आये दिन मौक़ा मिलते ही आशु मलिक की राह में काँटे बोने लगे।
आज़म ख़ान साहब की इस तुनक मिज़ाजी का एक वक़्त तो ऐसा आया कि ग़ाज़ियाबाद स्थित हज हाउस के उद्घाटन के मौक़े पर आज़म ख़ान साहब इतने घटिया स्तर पर उतर आये कि उन्होंने अपने एक क़रीबी अधिकारी, ग़ाज़ियाबाद के तत्कालीन नगर आयुक्त अब्दुल समद से कहकर अपनी ही सत्ताधारी पार्टी के विधायक द्वारा शहर भर में लगवाये गये स्वागत-सम्मान के बैनर-पोस्टर आधी रात को CRANE से उखड़वा कर बीच सड़क पर फिंकवा दिये। इतना ही नहीं आज़म ख़ान साहब ने कार्यक्रम में अध्यक्षता कर रहे तत्कालीन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव जी और मुख्य अतिथि के रूप में पहुँचे तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी के मंच से पार्टी और परिवार के बेहद क़रीबी विधायक का नाम कटवाकर उनको मंच पर चढ़ने नहीं दिया।
जहाँ एक तरफ मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर इस सब घटनाक्रम की थू-थू हुई वहीं आशु मलिक के बर्दाश्त की इंतेहा भी ख़त्म हो गई और आशु मलिक ने खुलेआम ग़ाज़ियाबाद से लेकर दिल्ली बार्डर तक अपनी ही सरकार के ताक़तवर कैबिनेट मंत्री आज़म ख़ान साहब के पुतले फुंकवाकर उनको उन्हीं की भाषा में जवाब दे दिया और दोनों के बीच बातचीत के दरवाज़े भी बंद हो गये।
ख़ैर, इधर वक़्त बीता और साल 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की क़रारी हार और अखिलेश सरकार की सत्ता से बेदख़ली के बाद आज़म ख़ान साहब की जेलयात्रा के दौरान बुरे वक़्त में आशु मलिक ने एक बार फिर पुरानी बातें भुलाकर आज़म ख़ान साहब की तरफ क़दम बढ़ा दिये और इस बार आशु मलिक ने आज़म ख़ान ही नहीं बल्कि उनके विधायक पुत्र अब्दुल्लाह आज़म ख़ान से भी दोस्ती कर ली।
आज़म ख़ान साहब और उनकी पत्नी-पुत्र की जेलयात्रा के दौरान आशु मलिक लगातार पूरे रामपुर परिवार के संपर्क में रहे और अपनी तरफ से हरसंभव मदद की कोशिश करते रहे।
लेकिन आज़म ख़ान तो साहब आज़म ख़ान हैं÷)
और वैसे भी बुरा वक़्त काट रहे हर आम आदमी तक की तरह आज़म ख़ान भी शायद अपने बुरे वक़्त के लिये दूसरों को ज़िम्मेदार मानते हैं इसलिये आज़म ख़ान ने सपा मुखिया अखिलेश यादव समेत आशु मलिक जैसे लोगों को अपने बुरे वक़्त का ज़िम्मेदार मानते हुये ज़मानत मिलने से ऐन पहले अपनी तुनकमिज़ाजी का उदाहरण देते हुये सपा मुखिया अखिलेश यादव इत्यादि को गरियाना शुरू कर दिया।
ज़मानत वाले दिन जब सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और सपा मुखिया अखिलेश यादव के प्रतिनिधि के तौर पर जब आशु मलिक सीतापुर जेल पहुँचे तो जेल से बाहर निकलते ही आज़म ख़ान ने बेवजह अचानक आशु मलिक से भिड़ंत करने की कोशिश की लेकिन आज़म ख़ान साहब के दोनों बेटों अदीब और अब्दुल्लाह ने बीच-बचाव करते हुये मामले को शांत किया।
उसके 2-4 दिन बाद ही आज़म ख़ान हालिया विधानसभा चुनाव में जीत के बाद अपनी विधायकी की शपथ लेने के लिये उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुँचे थे, इत्तेफ़ाक़ से वहाँ पर मौजूद आशु मलिक ने आज़म ख़ान साहब से गुज़ारिश करते हुये कहा कि शपथग्रहण में पार्टी मुखिया अखिलेश यादव जी को भी आमंत्रित कर लिया जाये।
बस्स इतना सुनना था कि अपनी तुनकमिज़ाजी के लिये मश्हूर और किसी बात पर ख़ार खाये बैठे आज़म ख़ान साहब ने विधानसभा में मौजूद तमाम पत्रकारों और अन्य लोगों की मौजूदगी में एक बार फिर आशु मलिक को बुरी तरह डाँटा और ख़ासा अपमानित किया जिसके विज़ुअल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कैमरों में भी क़ैद हो गये।
इतना सब होने पर भी आशु मलिक पार्टी डिसिप्लिन का ख़्याल कर किसी तरह ख़ून का घूँट पीकर ख़ामोश रह गये।
लेकिन ताज़ा मामला है पार्टी हाईकमान द्वारा विधानपरिषद में भेजे गये 2 मुस्लिम विधायकों का।
जहाँ एक तरफ माननीय आज़म ख़ान साहब ने सीतापुर निवासी जसमीर अंसारी साहब को सदन में भेजने का कड़ा विरोध किया, वहीं दूसरी तरफ सहारनपुर निवासी अपने एक क़रीबी छुटभैया नेता के अटैची उठाऊ बालक को सदन में भिजवाकर सहारनपुर की राजनीति में बवाल मचा दिया।
दरअसल, इत्तेफ़ाक़ से सदन में भेजे गये दोनों नेताओं से आशु मलिक का गहरा ताल्लुक़ है और जहाँ एक तरफ आशु मलिक भी सीतापुर निवासी जसमीर अंसारी के नाम पर सहमत और सिफारिशी थे वहीं दूसरी तरफ आशु मलिक सहारनपुर से ही ताल्लुक़ रखने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित, बेहद क्रांतिकारी और क़द्दावर राजनेता इमरान मसूद को सदन में भेजने के पक्षधर थे लेकिन आज़म ख़ान साहब ने जहाँ एक तरफ जसमीर अंसारी का विरोध किया वहीं दूसरी तरफ सहारनपुर से क़द्दावर इमरान मसूद को REDCARD दिखवाकर उनकी जगह सभासद के इलेक्शन में भी ज़मानत जब्त कराने वाले एक सस्ते नेता के अटैची उठाऊ बालक को सदन में भिजवा दिया जो आशु मलिक और इमरान मसूद, दोनों के लिये एक बड़ा सियासी झटका है और इस बात को लेकर दोनों नेता आज़म ख़ान की ख़ूब लानत-मलामत कर रहे हैं और भविष्य में एक बार फिर दिल्ली से लखनऊ तक माननीय आज़म ख़ान साहब के पुतले उन्हीं की पार्टी के कार्यकर्ता फूँकते हुये देखे जा सकते हैं.।