अब्बास अलमदार की शाहदत को याद कर किया मातम

झांसी/उत्तर प्रदेश:(सुल्तान आब्दी)–माहे मोहर्रम की 8 तारीख को हसन मंजिल में मजलिस मुनाकिद की गयी, जिसमें दिल्ली से आए आलिम ए दीन मौलाना गाजी साहब ने तकरीर की और इस्लाम में शहादत का मर्तबा समझाया के के आखिर इमाम हुसैन ने 10 मुहर्रम को कर्बला में शहादत क्यों दी उनका मकसद क्या था शहादत का, हक्क और बातिल में फर्क़ क्या है, सच के लिए कुर्बान क्यों ना होना पड़े पर सच का साथ मत छोडऩा, आज की तारीख खासतौर पर इमाम हुसैन के सिपाहसलार हज़रत अब्बास से मुनसिब है, जो कर्बला में मौजूद प्यासे बच्चों के पानी लाते वक़्त शहीद हो गए, उस वक़्त के सबसे बहादुर व्यक्ती का नाम था अब्बास जो इमाम हुसैन के अलमदार भी थे जिनको जंग की इजाजत ना मिली अपने भाई और रसूल स. की उम्मत को बचाने के खातिर उन्होंने शहादत कबूल की.. उनकी ही याद में आज जो अलम उठाया जाता है।
इस्लाम ने हमको समझाया है के आतंकवाद और जुल्म के खिलाफ़ हमेशा आवाज बुलंद करना चाहिए और अपने देश के प्रीति मोहब्बत और देश के झंडे से हमेशा वफ़ादारी करना चाहिए जिसको अपने देश से मोहब्बत नहीं वो इंसान ग़द्दार और आतंकवादी है…
मजलिस की शुरूआत अली नवाब ने मरसिये से की बाद में वज़ाईम, आमीर, सरकार हैदर ने रुबाई पढ़ी और मजलिस की खिताबत मौलाना गाजी साहब जो के दिल्ली से तशरीफ लाए है उन्होंने की उसके बाद हज़रत अब्बास का अलम बरामद हुआ जिसके साथ वहाँ मौजूद अजादारों ने मातम कर के अपना अकीदा पेश किया नौहाखानों में शानू, हाशिम और समर अली ने अपना अकीदा पेश किया, मजलिस में मौजूद चंदा भाई, कमर अली, फुरकान, फिरोज, गुड्ड, अता आब्दी, आसिफ़ और मुजफ्फरनगर से आते अलीम से दिन सैय्यद मुजफ्फर हुसैन किबला और आदि अजादार मौजूद रहे।
बाद मजलिस सब ही अजादारों के लिए खाने का इन्तेजाम भी कराया गया…आखिर में सगीर मेहंदी ने सब का शुक्रिया अदा किया…