अखंड सौभाग्य के पर्व वट सावित्री पूजन पर सुहागिन महिलाओं ने की वट वृक्ष की पूजा

सुहागिनों ने पति की लंबी उम्र का मांगा वरदान,अखंड सौभाग्य के लिए जगह जगह पर सुहागिन महिलाओं ने की वट व्रक्ष की पूजा अर्चना
लखीमपुर खीरी- (नूरुद्दीन) अखण्ड सौभाग्य तथा सुख-शांति की कामना को लेकर जनपद भर की महिलाओं ने बड़ी संख्या में वटवृक्ष की पूजा अर्चना की।पूजा को लेकर महिलाओं ने बरगद के वृक्ष के नीचे सावित्री की प्रतिमा बनाकर विधिवत पूजन किया।नये पकवानों फलों व फूलों से पूजन कर महिलाओं ने बांस के पंखे से हवा की और पेड़ में सूत लपेट कर परिक्रमा की।
सुबह से सुहागिनों ने पूजा की थाल सजायें वट वृक्ष को धागा बांधकर फल, दूध,अच्छत इत्यादि अर्पित करते पूजा अर्चना की और पति की दीर्घायु की कामना की।पूजा को लेकर त्रृषि आश्रम स्थित मंदिर,पिपरिया बाईपास भोईफोरवानाथ मन्दिर के साथ साथ जिले के अलग अलग स्थानों पर महिलाओं ने बड़ी संख्या में पूजा की।नई सुहागिनों को परंपरा और पूजा के तौर-तरीके बताने के लिए उनकी सास भी मौजूद दिखी।
महिलाओं ने शुद्ध जल, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल, फल और धूप से पूजन किया। साथ ही मीठे पुआ भी चढ़ाया गया।मान्यता के अनुसार ब्रह्मा वृक्ष की जड़ में,विष्णु इसके तने में और शिव उपरी भाग में रहते हैं।इसी से मान्यता है कि इस पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है।पति की दीर्घायु की कामना करते हुए मन्दिरो के परिसर व वट वृक्ष के आस पास सुहागिन महिलाओं की भारी भीड़ रही।श्रद्धा और उल्लास के साथ महिलायें बरगद के पेड़ के नीचे एकत्रित हुई जहाँ पेड़ की जड़ में फल, दूध, अछत, पकवान आदि अर्पित करते हुए सुख समृद्धि की कामना की है।
साथ ही भुइफोरवानाथ मन्दिर में स्थित वट वृक्ष की पूजा करने वाली महिलाओं की भारी भीड़ रही इसके अलावा ऋषि आश्रम, पंजाबी कालोनी, वन विभाग कार्यालय आदि जगहों पर पूजा करने वाली महिलाओं की भारी भीड़ लगी रही।वहीं भुइफोरवानाथ मन्दिर दिन भर मेला लगा रहा।प्राचीन काल से प्रचलित है यह व्रत वैदिक ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत का प्रचलन एक प्राचीन काल से है।पार्वती जी के अनुरोध पर शंकर जी ने इस व्रत की कथा सुनाई थी।
शंकर जी बताते हैं कि मद्र देश में एक धर्मात्मा और न्यायप्रिय राजा अश्वपति राज करते थे।उनको सावित्री नामक एक पुत्री थी जो अलौकिक गुणों से सम्पन्न होने के कारण एक देव कन्या के समान थी।विवाह योग्य होने पर राजा अश्वपति सुयोग्य वर की तलाश करने लगे।वेदाचार्य दिवाकर पाण्डेय ने बताया कि नारद जी ने राजा अश्वपति को सावित्री के लायक योग्य वर शाल्व देश के राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को बताया था।
उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सत्यवान की आयु मात्र एक वर्ष ही है।उन दिनों राजा द्युमत्सेन अंधे हो चुके थे और राजपाट छोड़कर एक आश्रम में रहा करते थे।सत्यवान बड़े मनोयोग से माता पिता की सेवा करता था।विवाह के बाद सावित्री आश्रम में रहकर अपने पति व सास-ससुर की सेवा करती थी। सावित्री को नारद की बातें हमेशा याद रहती थी। जब एक वर्ष में चार दिन बचे थे तब सावित्री निराहार रहकर पूजा में लीन रहती थी।चौथे दिन जब सत्यवान कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने के लिए जंगल में जाने लगा तो सावित्री भी पीछे-पीछे चलने लगी।
लकड़ी काटते समय जब सत्यवान के सिर में दर्द हो गया तो वह पेड़ से उतर आया और एक वटवृक्ष के नीचे बैठी सावित्री की गोद में लेट गया। तभी सत्यवान के प्राण लेने यमराज आ पहुंचे।यमराज ने सावित्री से कहा कि सत्यवान की आयु समाप्त हो गयी है। मैं उसे लेने आया हूं। जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे पीछे चलने लगी। यमराज के समझाने के बाद भी सावित्री ने यमराज का पीछा नहीं छोड़ा तो विवश होकर यमराज ने तीन वरदान मांगने को कहा।वट सावित्री व्रत का महत्व भी माना गया है बताते हैं कि वट का मतलब होता है बरगद का पेड़।बरगद पेड़ में कई जटाएं निकली होती हैं।