मोठ विकासखंड के अधिकारी कायाकल्प के नाम पर खा गए लाखों रुपए, बदहाली में है बाबई का परिषदीय विद्यालय; 25 परसेंट हो रही बच्चों की अटेंडेंस

झांसी/उत्तर प्रदेश:(सुल्तान आब्दी)– जनपद के मोठ विकासखंड में इन दिनों 34 फीसदी कमीशन का मामला गरमाया हुआ है। सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को सुगम एवं स्मार्ट बनाने के लिए। परिषदीय विद्यालयों के कायाकल्प के लिए लाखों रुपए का बजट विकासखंड को दिया था। सरकार के मंसूबों पर पानी फेरते विकासखंड के अधिकारी साफ नजर आ जाते हैं जब स्कूलों की दुर्दशा वायरल होती फोटो एवं वीडियो में देखने को मिलती है। ऐसा ही एक मामला मोठ विकासखंड के बाबई गांव से सामने आया है। जहां के कैंपस में मैदान की जगह कीचड़ एवं गंदे पानी का तालाब दिखाई देता है।
जिला प्रशासन के नाम लिखा पत्र
एक जिला प्रशासन के नाम इसी गांव के रहने वाले लोकेंद्र सिंह, नरेंद्र कुमार, राहुल कुमार और वीरेंद्र सिंह ने पत्र लिखा है जिसमें स्कूल की दुर्दशा का पूरा जिक्र किया है। साथ में पत्र में लिखा है कि पानी इतना गंदा है जिसमें जहरीले सांप तक पनप चुके हैं। बच्चे इसी गंदे पानी से होकर अपनी क्लास में बैठने जाते हैं। बच्चों के माता-पिता को हरदम किसी अनहोनी होने का डर सताता रहता है।
इसी स्कूल में पढ़ने वाला मासूम सा चेहरा लिए देव बताता है कि बच्चे स्कूल आने के लिए गंदे पानी से होकर गुजरते हैं। गंदगी इतनी ज्यादा है कि कई बच्चों के मां-बाप उन्हें स्कूल ही भेजना बंद कर गए। वहीं, एक अन्य बच्चा अपनी दबी आवाज में कहता है कि पानी में सांप रहते हैं। बात सिर्फ स्कूल के अंदर कीचड़ की नहीं है बल्कि स्कूल तक पहुंचने के लिए एकमात्र रास्ता है वह भी कच्चा है।
हाल ही में एक व्यक्ति को डस चुका सांप
गांव के रहने वाले नौजवान लोकेंद्र सिंह का कहना है कि स्कूल की बदहाली की शिकायत ऑनलाइन पोर्टल पर भी दर्ज करवाई गई लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं होती है। अपने अंदर का डर बताते हुए आगे कहते हैं कि गांव के ही रहने वाले एक राजू चौधरी थे जिन्हें सांप ने डस लिया। आनन-फानन में उन्हें झांसी रेफर कराया गया लेकिन वहां भी उनका इलाज ना हो सका। उसके बाद उन्हें ग्वालियर लेकर जाना पड़ा। जहां उनका इलाज चल रहा है। लोकेंद्र कहते हैं कि गांव वालों के साथ-साथ प्रधान ने भी कई बार इसकी शिकायत ऊपर की लेकिन विकासखंड में बैठे अधिकारी हमारी एक नहीं सुनते हैं। अधिकारी सिर्फ कोरी दिलासा दिलाते हैं और बोलते हैं घर जाओ आपका काम हो जाएगा। पच्चीस परसेंट ही बच्चे स्कूल में पढ़ने पहुंच पाते हैं। बाकी अपने घर पर ही समय गुजार रहे हैं।