March 15, 2025

Dilip C Mandal एक ऐसा नाम जोकि आदिवासी समाज की आवाज उठाने के लिए हमेशा मुखर रहे हैं

 Dilip C Mandal एक ऐसा नाम जोकि आदिवासी समाज की आवाज उठाने के लिए हमेशा मुखर रहे हैं

शिक्षक दिवस के मायने

Dilip C Mandal एक ऐसा नाम जोकि आदिवासी समाज की आवाज उठाने के लिए हमेशा मुखर रहे हैं


अब JNU में प्रोफेसर हैं,एक जाना-पहचाना नाम है।

सुनीता राजेश्वर(अध्यक्ष-परिणय)

Dilip C. Mandal संघर्ष की कहानी?

मैं दिलीप मंडल को पत्रकारिता के समय से जानती हूं और लगभग उसी समय रवीश कुमार भाई से भी परिचय हुआ था किन्तु तब ये दोनों ही अपने-अपने जीवन के संघर्ष कर रहे थे और कमोबेश यही कुछ स्थिति मेरी भी थी। बहुत सम्भव है कि रवीश कुमार भाई को तो यह सब याद भी न हो क्योंकि हम पत्रकारों का अड्डा शाम के वक्त आईएनएस बिल्डिंग के नीचे चाय की दुकान हुआ करती थी। जहां पूरे दिनभर की खबरों का आदान-प्रदान हुआ करता था।उस समय न्यूज चैनल का डंका बजना शुरू नहीं हुआ था। इसीलिए कमोबेश सभी बड़े -छोटे-संघर्षरत पत्रकारों का जमावड़ा वहां शाम को आईएनएस बिल्डिंग वाली चाय की दुकान हुआ करता था।अब वहां क्या हाल है? कहना मुश्किल है क्योंकि मेरा आना-जाना न के बराबर ही है।


खैर रवीश कुमार भाई पर बात फिर कभी।आज बात सिर्फ दिलीप मंडल की। उस समय दिलीप मंडल ‘अमर उजाला’ में और मैं ‘रांची एक्सप्रेस’ में बतौर पत्रकार काम करते थे। इसलिए इसलिए खबरों के आदान-प्रदान से लेकर अनेक बार प्रेस कांफ्रेंस वगैरह में भी आना-आना प्रतिदिन के कार्यकलापों में शामिल था। यही एक वजह थी कि दिलीप मंडल भाई के बारे में थोड़ा ज्यादा जान पाई।


खैर यहां जो विशेष है, एक तो यही कि दिलीप मंडल भाई ने भी अंतर्जातीय प्रेम विवाह ही किया है ‌और उस समय दिलीप मंडल अपनी पत्नी के कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी से जूझ रहे थे। स्वाभाविक है हम पत्रकार आर्थिक रूप से सुदृढ़ बहुत कम ही होते हैं और ऐसी स्थिति में अगर किसी की पत्नी को कैंसर हों और उनका इकलौता बेटा महज़ छः -सात साल का हो और सम्भालने वाला कोई न हो, तब हम सब सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं कि दिलीप भाई किस बुरी मानसिक और आर्थिक स्थिति से गुजर रहे होंगे?


फिर एक दिन पता चला कि दिलीप मंडल भाई की पत्नी कैंसर में बच नहीं पाई।अब छोटे से बेटे कि देखभाल और पत्रकारिता दोनों के बीच कैसे तालमेल बिठाया होगा? सचमुच बहुत मुश्किल रहा होगा। इधर मैं अपने जीवन के संघर्षों में उलझी थी और अर्से तक कोई बातचीत तक नहीं हुई। हां इस बीच पता चला कि दिलीप मंडल ने एक बुक लिखी है,अच्छा लगा कि दिलीप भाई ने ऐसी विकट स्थिति में भी अपनी हिम्मत बनाए रखी और इधर उधर भी नहीं भटके और अब तो संघर्षरत और जीवट व्यक्तित्व के धनी दिलीप मंडल को आप सभी जानते और पहचानते हैं, है न!


भला मैं आज यह सब आपको क्यों बता रही हूं? क्योंकि आज शिक्षक दिवस हैं और इस दिन की सार्थकता तभी है जब हम इसके वास्तविक अर्थ से वाक़िफ हो। मतलब अच्छी सीख जहां कहीं से भी मिले,उससे सीखे और बुरी बातों को छोड़ें।हम भी #dilipcmondal के संघर्ष और जीवटता से बहुत कुछ सीख सकते हैं,हैं।

Bureau