लोकतंत्र किस चिड़िया का नाम है दुनिया का दुलारा लोकतंत्र बनाम डेमन क्रेजी( न्यायरहित डेमोक्रेसी) -रियाजुल्ला खान

लखीमपुर खीरी/उत्तर प्रदेश:(संवाददाता चांद मियां)–हम आज भी जब इस बात पर बहस कर रहे हैं कि मृत्यु के बाद ज़िन्दगी है या नही,तब क्या हम उसमे एक और सवाल जोड़ सकते हैं?क्या लोकतंत्र के बाद जीवन है?अगर है तो उस जीवन का स्वरूप क्या होगा?लोकतंत्र से मेरा आशय किसी आदर्श या आकांक्षा से नही है।मेरा मतलब उसके कामकाजी नमूने पश्चिम के उदारवादी लोकतंत्र या फिर उसके अनेक संस्करणों से है।
तो फिर क्या लोकतंत्र के बाद ज़िन्दगी है?
इस सवाल के बचाव में तर्क तुलना से गढे जाने लगते है कुछ गड़बड़ियां है ये आदर्श नही है
लेकिन अफगानिस्तान,पाकिस्तान,सऊदी अरब,या सोमालिया से बेहतर है लोकतंत्र के बाद का जीवन का सवाल हम जैसे उन लोगो को संबोधित है जो पहले से कथित लोकतंत्र में रह रहे है या जो लोकतांत्रिक होने का दिखावा कर रहे हैं।एक कश्मीरी प्रदर्शनकारी जब प्रोटेस्ट में अपनी तख्ती पर लिखता है दुनिया की सबसे बड़ी डेमन क्रेजी के बारे में ‘न्यायरहित डेमोक्रेसी=डेमन क्रेजी’ यानी शैतानी पागलपन क्या इसमें सच्चाई है ?
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अब समाज दो हिस्सों में बंट गया है ऊपर गाढ़ी मलाई की पतली सी परत नीचे ढेर सारा पानी मलाईदार परत दरअसल लाखो उपभोक्ताओं का भारतीय बाजार है (कार, सेलफोन,कम्प्यूटर, विलासिता का जीवन) जिसपर अंतरराष्ट्रीय व्यापार रश्क करता है रहा पानी जिसका कोई महत्व नही इसे नालियों में बहा दिया जाता है।आडवाणी द्वारा जो साम्प्रदायिकता की नींव डाली गई उस नींव के दम पर इमारत बना कर आज मोदी देश के प्रधानमंत्री बन बैठे आज यह बात ठोंक ठोंक कर दिलों में बैठा दी गयी हिन्दू भारत की किसी भी गलत नीति का विरोध राष्ट्र विरोध है ।फरवरी 2002 में ट्रेन के एक डिब्बे में आग लगा दिए जाने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री गुजरात के अपरोक्ष नेतृत्व में सुनियोजित ढंग से मुस्लिमो का कत्लेआम दुनिया के सबसे दुलारे लोकतंत्र में सरकार द्वारा मुस्लिम नागरिकों को जारी की सार्वजनिक चेतावनी थी।
आज हम एक ज़हर घुला प्याला पी रहे है एक खोटा लोकतंत्र जिसमे धार्मिक फासीवाद मिला हुआ है शुद्ध हलाहल! हम क्या करें?हम क्या कर सकते जब सीबीआई,ईडी,निर्वाचन आयोग,यहां तक कोर्ट सब कुछ प्रभावित हो सकता है सत्ता के दबाव में लोकतंत्र बिखरता हुआ नजर आ रहा है सत्ताधारी पार्टी रक्तस्राव से पीड़ित है आतंकवाद के खिलाफ लफ़्फ़ाज़ी,यूएपीए जैसे कानून,पाकिस्तान, मुसलमान के खिलाफ हुंकारे भरना उनका मनपसंद शगल बन गया है। भारत में इस समय ऐसी कोई बहस नही हो रही कि बदलाव की बात हो राजनीतिक दल अपना अस्तित्व और सत्ता कैसे हासिल हो उसी जुगाड़ में व्यस्त हैं।इसका परिणाम देश के जीवन को बदल कर रख देगा बदतरी की तरफ अमीर गरीब शहरी ग्रामीण सबके लिए निजीकरण हिन्दू मुस्लिम मंदिर मस्जिद के जो बीज कांग्रेस ने बोए उस घिनौनी फसल को भाजपा काट रही है।इन सबका मतलब ये नही की संसद का महत्व नही बचा बस ज़रूरत है इच्छाशक्ति की ऐसे समय जब अवसरवाद की तूती बोल रही जब आशा दम तोड़ती नज़र आ रही जब हर चीज़ बिक रही या सत्ता से प्रभावित हो रही या डर से प्रभावित की जा रही ।हमे ऐसे समय में सपने देखने का साहस जुटाना पड़ेगा न्याय में ,स्वतंत्रता में ,और गरिमा में विश्वास का रोमांस सबके लिए एकजुट होकर लड़ाई लड़नी होगी ,हमे समझना और समझाना होगा कि दैत्याकार पुरानी मशीन कैसे काम करती है और नुकसान किसान,मज़दूर और आने वाली पीढ़ी का करती है कौन कीमत चुकाता और फायदा किसे होता है।हमे सिविल नाफरमानी के अर्थ की पुनः कल्पना करनी होगी।हमारे पास समय कम है हमारे बोलने के दौरान भी हिंसा का घेरा कसता जा रहा है हर हाल में बदलाव तो आएगा ही वो रक्त रंजित भी हो सकता है या खूबसूरती में नहाया हुआ, यह हम पर निर्भर है…..
नही निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नही विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही।