June 23, 2025

मेला जल बिहार महोत्सव में इस बार भव्य तरीके से निकाले जाएंगे भगवान लठाटोर के विमान

 मेला जल बिहार महोत्सव में इस बार भव्य तरीके से निकाले जाएंगे भगवान लठाटोर के विमान

झांसी/उत्तर प्रदेश:(सुल्तान आब्दी)–-दो साल कोरोना काल के बाद मेला जलविहार महोत्सव का 6 सितंबर को होगा भव्य शुभारंभ। झांसी मऊरानीपुर मेला जलविहार महोत्सव का आगाज कोरोना महामारी के दो वर्ष बाद इस वर्ष 5 सितंबर को होने जा रहा है।यह जलविहार महोत्सव 154 वा है।मेला जलविहार का इतिहास मऊरानीपुर में बहुत पुराना है।नगर के मध्य निकली सुखनई नदी जिसके दोनों किनारों पर अति प्राचीन मंदिर बने है।अगर बुजुर्गों की माने तो देश मे भगवानों का विहार मऊरानीपुर से शुरू हुआ।सैकड़ो विमान में देवी देवताओं की प्रतिमाएं पूरे नगर से निकलती हुई सुखनई नदी के तट पर पहुचते है वहा भगवानों का विहार होता है।बारस की रात्रि में सैकड़ो विमानों की अगुवाई गुदर बादशाह भगवान करते है विमानों में सबसे आगे गुदर बादशाह का मन्दिर का विमान होता है।इसका यह कारण है जब 1942-1943 में अग्रेजो ने जलविहार में भगवानों के विहार पर रोक लगा देने का तुगलकी फरमान जारी कर दिया था।उस समय इतनी तानाशाही के चलते किसी भी मन्दिर के पुजारी ने विमान का विहार कराने की हिम्मत न जुटा सके।तब गुदर बादशाह के पुजारी ने अग्रेजो के इस तुगलकी फरमान को दर किनार कर उनसे लोहा लेते हुए अकेले ही विमान निकालकर बिहार कराया तब से आज तक विमानों की अगुवाई गुदर बादशाह भगवान ही करते है।हालांकि इस परंपरा को बी एस पी शासन में तोड़ने की कोशिश की गई थी लेकिन नगर के सभ्रांत नागरिकों एवम मन्दिर के पुजारियों ने इसका विरोध किया जिसके चलते यह परंपरा नही टूटने दी।जलविहार महोत्सव में दो दिन खास माने जाते है एक बारस व चऊदस इन दो दिनों की रात्रि में नगर व क्षेत्र के सैकड़ो विमान निकाले जाते है व इनका सुखनई नदी के तट पर विहार होता है।चउदस की रात्रि नगर व क्षेत्र अति प्राचीन एवम प्रसिद्ध मंदिर लठाटोर महाराज के नाम रहती है इस रात्रि सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्र व बाहर से लोग भगवान लठाटोर के दर्शन करने आते। लठाटोर भगवान के बारे में लोग बताते हैं कि जब भी लठाटोर भगवान का विमान लठ्ठो पर निकलता है तो लठ्ठ टूट जाते हे इसका प्रमाण खुद लोगो ने देखा। लठाटोर भगवान का विमान मंदिर से निकलते ही अपनी ससुराल मुहल्ला कटरा स्थित सरोज पुरवार के यहां पहुंचता हे ससुराल में सरोज जो सत्तर वर्ष की वृद्धा अकेली रहती है ।खुद को दो टाइम की रोटी की उसे परेशानी है लेकिन भगवान का ससुराल में आने पर उनका भव्य स्वागत किया जाता है।मुहल्ले वाले भी उनका स्वागत करते है।लगभग पंद्रह दिन चलने वाले इस मेले में रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते ही।जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में स्थानीय लोग आते हैं।

Bureau